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यस्य॑ दू॒तो असि॒ क्षये॒ वेषि॑ ह॒व्यानि॑ वी॒तये॑। द॒स्मत्कृ॒णोष्य॑ध्व॒रम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yasya dūto asi kṣaye veṣi havyāni vītaye | dasmat kṛṇoṣy adhvaram ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यस्य॑। दू॒तः॑। असि॑। क्षये॑। वेषि॑। ह॒व्यानि॑। वी॒तये॑। द॒स्मत्। कृ॒णोषि॑। अ॒ध्व॒रम् ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:74» मन्त्र:4 | अष्टक:1» अध्याय:5» वर्ग:21» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:13» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् ! आप (यस्य) जिस मनुष्य के (वीतये) विज्ञान के लिये अग्नि के तुल्य (दूतः) दुःखनाश करनेवाले (असि) हैं (क्षये) घर में (हव्यानि) हवन करने योग्य उत्तम द्रव्यगुणकर्मों को (वेषि) प्राप्त वा उत्पन्न करते हो (दस्मत्) दुःख नाश करनेवाले (अध्वरम्) अग्निहोत्रादि यज्ञ के समान विद्याविज्ञान को बढ़ानेवाले यज्ञ को (कृणोषि) सिद्ध करते हो, उसका सब मनुष्य सेवन करें ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जिस मनुष्य ने परमेश्वर के समान विद्वान् पढ़ाने और उपदेश करनेवाले की चाहना की है, उसको कभी दुःख नहीं होता ॥ ४ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे विद्वँस्त्वं यस्य वीतयेऽग्निरिव दूतोऽसि क्षये हव्यानि वेषि दस्मदध्वरं च कृणोति, तं सर्वे सत्कुर्वन्तु ॥ ४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) मनुष्यस्य (दूतः) दुःखोपनाशकः (असि) (क्षये) गृहे (वेषि) प्राप्नोषि (हव्यानि) होतुमर्हाण्युत्तमगुणकर्मयुक्तानि द्रव्याणि (वीतये) विज्ञानाय (दस्मत्) दुःखोपक्षेत्तारम्। अत्र बाहुलकादौणादिको मदिक् प्रत्ययः। (कृणोषि) करोषि (अध्वरम्) अग्निहोत्रादिकमिव विद्याविज्ञानवर्द्धकं यज्ञम् ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। येन मनुष्येण परमेश्वरवद्विद्वांसावध्यापकोपदेष्टारौ विज्ञापकौ चेष्येते, तस्य न कदाचिद् दुखं संभवति ॥ ४ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्या माणसाने परमेश्वराप्रमाणे विद्वानाच्या अध्यापनाची व उपदेशाची इच्छा बाळगलेली आहे त्याला कधी दुःख होत नाही. ॥ ४ ॥